Friday, May 8, 2009

शिक्षा का अधिकार और सरकार की मंशा

राज्य सभा में पेश
"बच्चों के लिए मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार विधेयक, 2008"
की पैरवी करने वालों से सवाल

मानव संसाधन मन्त्रालय द्वारा मन्त्रीमंडलीय सचिवालय, भारत सरकार को फरवरी 2008 में विधेयक के प्रारूप के साथ लिखे गोपनीय पत्र* में से नीचे दिए उद्धरण को ध्यान से पढ़िए।

"संविधान (86वां संशोधन) अधिनियम, 2002 का खन्ड 1(2) कहता है कि यह उस तारीख से लागू होगा जिसकी अधिसूचना केन्द्रीय सरकार सरकारी गजट में जारी करेगी। 86वें संविधान संशोधन को बाध्यकारी बनाने में काफ़ी देरी हो चुकी है। जब तक ८६वां संविधान संशोधन बाध्यकारी नहीं बनाया जाता तब तक 0-14 आयु समूह के बच्चों को अपने दायरे में लानेवाला सुप्रीम कोर्ट का उन्नीकृष्णन प्रकरण में दिया गया फैसला देश में कानून के रूप में लागू है। अतः 86वें संविधान संशोधन, जिसके दायरे में 6-14 आयु समूह के बच्चे आते हैं, को सरकारी गजट में अधिसूचना जारी करके बाध्यकारी बनाना एक तात्कालिक ज़रूरत बन गई है।"
*पत्र सं. एफ. एन. 1-1/2008 ईई.4, फरवरी 2008 (गोपनीय)

उक्त
सरकारी पत्र ने राज्य सभा में शिक्षा अधिकार विधेयक पेश करने के पीछे केन्द्रीय सरकार की असली मंशा की पोल खोल दी है। यानी सरकार यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के उन्नीकृष्णन फैसले से मिले शिक्षा के मौलिक अधिकार को छीनने के लिए ला रही है।
इसीलिए इस गैर-संवैधानिक, बाल-विरोधी और निजीकरण - बाजारीकरण के समर्थक विधेयक की पैरवी करने वालों से सवाल है कि आखिर वे इसके पक्ष में क्यों खड़े हैं..?
इस मुद्दे पर बहस लोकतंत्र का तकाज़ा है।
इस पर विस्तृत विवरण आने वाली पोस्टों में दिया जाएगा।

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